12 mukhi rudraksha
भगवान सूर्य के बारहों रूपों (द्वादशादित्य) के ओज, तेज और शक्ति-सामर्थ्य केट बिन्द. यह रुद्राक्ष बहुत कठिनाई से मिलता है। इसको धारण करने वाला व्यक्ति भी रोग और चिंता, शोक या भय-भ्रम से आक्रांत नहीं होता।
धन-वैभव ज्ञान और अन्य भौतिक-सुखों का प्रदाता यह दाना अद्भुत रूप-से प्रभावकारी प्रमाणित होता है।
यह दाना इतना अधिक चमत्कारी होता है कि इसके जल से प्रक्षालन मात्र करने से अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
द्वादशास्यस्य रुद्राक्षास्यैव कर्णे तु धारणात्,
आदि त्यास्तोषिता नित्यं द्वादशास्ये व्यवस्थिताः।
गोमेधे चाश्वमेधे च यत्फलं तद्वाप्नुयात्,
श्रृंगिणां शास्त्रिणांचव व्याघ्रादिनां भयं नहि।
न च व्याधिभयंतस्य नैव चाधि प्रकीर्तितः,
न च किंचित्भयं तस्य न व्याधि प्रर्वतते।
न कुतश्चितभयं तस्य सुखी-चैवेश्वरो भवेत्,
हस्त्यश्वसू गमार्जारसर्प मूणकदर्दुरान् ।
खरांशचश्य श्रृंगालांश्च हत्वा बहुविधानपि,
मुच्यते नात्र संदेहो वक्त्रद्वादश धारणात्।
बारह मुख वाला रुद्राक्ष कर्ण में धारण करें, तो उससे बारहों आदित्य प्रसन्न होते है। गामध और अश्वमेध का फल प्राप्त होता है। उसे सींग वाले, शस्त्रधारी और व्याघ्र जाद का भय नहीं होता, उसको आदि-व्याधि का भी भय नहीं रहता और न उसे कोई भय रन व्याधि होती है। अपित सर्वत्र सुख होता है तथा अधिपति बनता है। हाथी, अश्व,- मृग, मार्जार, मूषक, दर्दुर,खर कुत्ते, श्रृंगाल आदि बहुतेरे जीवों को मार कर भी द्वादशमुखी (बारहमुखी) रुद्राक्ष से उस का पाप छूट जाता है।
बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु के स्वरूप वाला है। बारहों आदित्य इसके देवता हैं। इसके धारण करने मात्र से किसी का भी भय नहीं रहता।
इस रुद्राक्ष का स्वामी राजा बनने योग्य होता है। शासन करने की इच्छा करने वाले व्यक्तियों को इसका धारण लाभ अवश्य पहंचाता है |
द्वादशमुखी रुद्राक्ष के धारण करने की विधि
1.रुद्राक्ष धारण कैसे करे और उसका लाभ ओर प्रभाव
2.रुद्राक्ष की असली नकली की पहचान और उसके रंग
ॐ ह्रीं क्षौं घृणि: श्रीं। इति मन्त्रः । अस्य श्रीसूर्यमन्त्रस्य भार्गव ऋषिः गायत्री छन्द: विश्वेश्वरो देवता ह्रीं बीज श्रीं शक्तिः घृणिः कीलकं रुद्राक्षधारणार्थे जपे विनियोगः। भार्गव ऋषये नमः शिरसे, गायत्री छन्दसे नमो मुखे विश्वेश्वरो देवतायै नमो हृदि, ह्रीं बीजाय नमो गुहो, श्री शक्तये नमः पादयोः। (अथ करन्यासः) ॐ ॐ श्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः ॐ ह्रीं श्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा, ॐ क्षौं श्रीं मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ घं श्रीं अनामिकाभ्यां हुं ॐ णि: श्रीं कनिष्ठाकाभ्यां वौषट्, ह्रीं क्षौ घृणिः श्रीं करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् (अथाङ्गन्यास:) ॐ ॐ श्रीं हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं श्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्षौ श्री शिखायै वषट् ॐ हं कवचाय हुँ। ॐ णिं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ ह्रीं क्षौ घृणि: श्रीं अस्त्राय फट्। (अथ ध्यानम्) शोणांभोरुहस्थितं त्रिनयनं वेदत्रयीविग्रहं दानांभोजयुगाभयानि दघतं हस्तैः प्रवालप्रभम्। केयूरांगदकंकणद्वयधरं कर्णेलसत्कुण्डलं लोकोत्पत्तिविनाशपालनकरं सूर्य गुर्णाधि भजेत्।
।। इति द्वादशमुखी.।।
नोट-12 mukhi rudraksha केश-प्रदेश में धारण करने से बारह आदित्य उसके मस्तक में विराजमान हो जाते हैं। इसे निम्न मंत्र से धारण करना चाहिए |
“ओम् क्रौं क्षौं रौं नमः”
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