आठमुखी रुद्राक्ष 8 mukhi rudraksha
यह बड़ी कठिनाई से प्राप्त होने वाला रुद्राक्ष है। इसे साक्षात् भैरवनाथ का प्रतिरूप माना जाता है। इस पर आठ धारियों की उपस्थिति इसे बहुत ही प्रभावशाली बना देती है।
इस दाने को धारण करने वाला व्यक्ति अनेक प्रकार के दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से सुरक्षित रहता है।
असत्य-भाषण के पातक से मुक्त करके,यह दाना (रुद्राक्ष) अपने उपासक को शिवलोक की प्राप्ति कराता है। भूत-प्रेतादि से रक्षा करने वाले इस दाने का मंत्र आगे दिया जाएगा।
अष्टवक्त्रो महासेनः साक्षाद्देवो विनायकः,
अन्नकूटं तूलकूटं स्वर्णकूटं तथैव च।
दुष्टांवस्त्रियं वाथ संस्पृशश्च गुरुस्त्रियम्;
एवमादीन पापानि हंति सर्वाणि धारणात्।।
विजास्तस्य प्रणश्यति याति चांते परम् पदम्,
भवंस्येते गुणा सर्वे हाष्टवकत्रस्य धारणात्।
हे महासेन-अष्टमुखी (आठमुखी) रुद्राक्ष साक्षात् गणेशजी का स्वरूप है। अन्नकूट, तुलाकूट, स्वर्णकूट, दुष्टवंशी स्त्री और गुरु स्त्री का स्पर्श इत्यादि पाप इसके धारण से दूर होते हैं।
इसके धारण से अन्य (और) पाप भी नष्ट होते हैं, तथा अंत में परम पद मिलता है। यह सब अष्टमुखी के धारण करने से प्राप्त होते हैं। अष्टमुखी रुद्राक्ष की आठ माताएं देवता हैं।
1. 7 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि एवं लाभ
2.छहमुखी रुद्राक्ष धारण करने की विधि संस्कृत श्लोकों, मन्त्रों द्वारा
यह रुद्राक्ष आठों वसु और गंगा को प्रसन्न करने वाला है। इसको धारण करने से सत्यवादी सब देवता प्रसन्न होते हैं। दुष्टवंश स्त्री और गुरुपत्नी का स्पर्श आदि पापों से मक्ति दिलाने का उपाय आठमुखी रुद्राक्ष धारण करना है। किसी भी तरह किया गया पाप, इससे नष्ट हो जाता है।
अष्टमुखी रुद्राक्ष के धारण करने की विधि
ॐ ह्रां श्री लं आं श्रीं। इति मन्त्रः । अस्य श्रीगणेशमन्त्रस्य भार्गवऋषिः अनुष्टुप्छन्दः विनायको देवता ग्रीं बीजं आं शक्ति: चतुर्वर्गसिद्धयर्थे रुद्राक्षधारणार्थे जपे विनियोगः। भार्गव ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप्छन्दसे नमो मुखे। विनायक देवतायै नमो हृदि । ग्री बीजाय नमो गुहो। आं शक्तये नमः पादयोः। (अथ करन्यास:) ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रां तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ प्री मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ ॐ अनामिकाभ्यां हु। ॐ आं कनिष्ठकाभ्यां वौषट्। ॐ श्री करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् (अथाङ्गन्यासः) ॐ ॐ हृदयाय नमः ॐ ह्रां शिरसे स्वाहा ॐ ग्री शिखायै वषट् ॐ लें कवचाय हुं, ॐ आं नेत्रत्रयाय वौषट् ॐ श्रीं अस्त्राय फट्। (अथ ध्यानम्) हरतु कुल गणेशो। विघ्नसधानशेषान् नयतु सकलसम्पूर्णतां साधकानाम्। पिवतु वटुकनाथ: शोणितं निन्दकानां दिशतु सकलकामना कौलिकानां गणेशः।
।। इति अष्ट मुवी.।।
8 mukhi rudraksha गणेश का प्रतीक है। इसके कारण करने से मनुष्य को दीर्घायु प्राप्त होती है। इसे निम्न मंत्र से धारण करना चाहिए
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