रुद्राक्ष कहां धारण करें?
ईशानमंत्र से सिर पर,
तत्पुरुषमंत्र से कान पर,
अघोरमंत्र से गले-हृदय पर।
वामदेवमंत्र से उदर पर पन्द्रह रुद्राक्षों को धारण करें, अथवा अंगों सहित पण पांच बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पांच या सात मालाएं धारण करें, या फिर मला (ओम् नमः शिवाय) से ही समस्त रुद्राक्षों को धारण करें।
अष्टोत्तरशतैर्माला रुद्राक्षधार्यते यदि,
क्षणे क्षणे अश्वमेघस्य फलं प्राजोति षण्मुख;
त्रिः सप्तकुलमुद्धृत्य शिवलोके महीयते।
हे षण्मुख ! जो एक सौ आठ रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं, उनको क्षण-क्षण में अश्वमेघ का फल प्राप्त होता है तथा वो अपने इक्कीस कुलों का उद्धार कर शिवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
षड्विशंद्भिः शिरोमाला पंचाशद्धयेनतु-
कलाक्षैर्बाहुवलये अर्काक्षैर्मणि बंधनाम्।
अष्टोत्तरशतेनापि पंचाशादिभः षडानन-
अथवा सप्तविंशत्या कृत्वा रुद्राक्ष मालिकाम्,
धारणात्वा जपाद्वापिानंतफलमश्नतेसे।
हे षडानन ! छब्बीस की माला सिर पर, पचास की हृदय में सोलह की बाहु म आ बारह की मणिबंध में और एक सौ आठ की, पचास अथवा सत्ताइस दानों की रुद्राक्ष की माल धारण करने से या जपने से अनंत फल प्राप्त होता है।
किं मुने बहुनोक्तेन वर्णनेन पुनः पुनः,
पूज्यते सततं देवेः प्राप्यते च परा गतिः;
रुदाक्ष एकः शिरसा धार्यो भक्तया द्विजोत्तमैः।
हे मुने ! बार-बार वर्णन करने से क्या है; एक ही रुद्राक्ष सिर पर भक्ति-से धारण करने से वो भक्त देवताओं से पूजित होकर परमगति को प्राप्त होता है।
rudraksha kaha pahne
1.15 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि एवं लाभ
2.13 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि एवं लाभ
3.11 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि एवं लाभ
रुद्राक्षांसंदधे देव गर्दभाः केन हेतुना।
कीटके केन वा दत्तस्तब्रूहि परमेश्वर।।
हे देव ! गर्दभ ने किस प्रकार से रुद्राक्ष धारण किया? कीटक में किसने उसे मार दिया, सो आप भली प्रकार से कहिए?
श्रृंगु पुत्र पुरावृतं गर्दभो विंध्यवर्वते,
धत्ते रुद्राक्ष धारं तु वाहितः पथिकेन तु।
श्रांताऽसमर्थस्तद्भारं वोढुं पतितवान्भुवि।
प्राणैस्त्यक्तस्त्रिनेत्रस्तु शूलपाणिर्महेश्वर।।
सुनो पुत्र ! विंध्याचल पर्वत पर एक गर्दभ (गधा) रहता था, वो एक पथिक द्वारा रुद्राक्ष-भार ढोया करता था। एक समय वो भार उठाने में असमर्थ होकर भूमि पर गिर गया और उसके प्राण निकले गये। त्रिनेत्र शूलपाणि महेश्वर रूप होकर-
मत्प्रसादामहासेन मदंतिकमुपागतः,
यावद्वक्त्रास्य संख्यानं रुद्राक्षाणां सुदुर्लभम्;
तावद्युगसहस्त्राणि शिवलो के महीयते ।
अभोक्तोवास्तु भक्तो व नीचो नीचतरोऽपि वा,
रुद्राक्षान्धारये द्यस्तु मुच्यते सर्वपातकै।।
मेरे प्रसाद से वो मेरे समीप आया, तो जितने रुद्राक्षों के मुख की संख्या थी, उतने ही दुर्लभ सहस्त्र वर्ष उसने शिवलोक में प्रतिष्ठा पाई। कोई भक्त या अभक्त, नीच-से-नीच भी क्यों न हो, जो रुद्राक्ष धारण करता है, सब पातकों से छूट जाता है।
सहस्त्र धारये द्यस्तु रुद्राक्षाणां धृतवतः।
तं नमति सुराः सर्वे यथा रुद्रस्थैव सः।।
अभावे तु सहस्त्रस्य वाह्वोः षोडशषोडशः
एक शिखायां करयो द्वादशै व तु।।
दात्रिशत्कंठदेशे तु चत्वारिशच्च मस्तके,
एकैकं कणयोः षट्पट् रुद्राक्षारुद्रवत्स तु पूज्यते।।
जो सहस्त्र रुद्राक्ष को धारण करता हे उसे समसत देवता प्रणाम करते हैं, वह रुद्र के समान हे | सहस्त्र न मिले तो दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह धारण करे।
शीखा मे एक,हाथ मे बारह, कंठ में बत्तीस और चालीस मस्तक मे, एकक कान में, छ: छ: वक्ष: अस्थल में; यों जो 108 रुद्राक्ष धारण करता है, वो रुद्र के समान पूजित होता है।
त्रिशंत त्वधमं पंचशत मध्यममुच्यते,
सहस्त्रमुत्तमम्प्रोक्त चैव भेदेन धारयेत।
तीन सौ रुद्राक्ष का धारण करना अधम, पांच सौ धारण मध्यम और एक मो धारण करना उत्तम है। इन्हें इस प्रकार के भेद से धारण करें-
शिसीशान मंत्रेण कर्णे तत्पुरुषेण च, अघोरेणललाटे तु तेनेव हृदयेऽपि च। अघोरबीज मंत्रेण करे यो धारयेत्पुनः,
पंचादशग्रथितां वामदेवेन् चोदरे। सिर में ईशान मंत्र से, कान में “तत्पुरुषाय विद्यमहे”, इत्यादि मंत्र से,
ललाट में आवार मंत्र से, अघोर मंत्र से ही हृदय में और अघोर बीज मंत्र से हाथों में धारण करें! पचास
रुद्राक्ष की माला “वामदेव’ मंत्र से उदर में धारण करें।